Friday 6 October 2023

मौन जिम्मेदार सारी हस्तियाँ खामोश हैं

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मौन  जिम्मेदार   सारी    हस्तियाँ    खामोश हैं
मुल्क की  इस  दुर्दशा  पर  कुर्सियाँ खामोश हैं/1/

जी दहल उट्ठा समय का खलबली सी मच गई
देख  किस्सा  खौफ़ तारी  सुर्खियाँ  खामोश हैं/2/

जंग जारी है निरंतर  बद व्यवस्था के खिलाफ़
त्रस्त  जनता है   मगर  नाकामियाँ  खामोश हैं/3/

रुख हवाओं का जिधर देखा उधर के हो लिए
देख कर  हालात  अपने   मर्ज़ियाँ  खामोश हैं/4/

रोज़ मर्रा   जिंदगी  से   रोज़  होता  हूँ  खफ़ा
दर्द  से है  दोस्ताना     सिसकियाँ  खामोश हैं/5/

भीड़ है  यूँ तो बहुत  लेकिन कोई जज्बा नही
आदमी की  शक्ल है  पर नेकियाँ खामोश हैं/6/

जंग और सर्कस   तमाशों की कहानी जिंदगी 
चैन राहत और सुकूं की झलकियाँ खामोश हैं/7/

रही है उम्र भर ये जिन्दगी अखबार क्या कहिए

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रही है   उम्र भर   ये  जिंदगी   अखबार   क्या  कहिए
तकाजे  रोज  हैं   दहलीज़  पे   लाचार    क्या कहिए/1/

जरूरत   की   रही   सांसे  हमेशा   रह्न  ही    अक्सर
बिकी हैं  ख्वाहिशें  सब की यहां  हर बार क्या कहिए/2/

जिधर भी  देखिए  रौनक    बड़ी  माहौल  जगमग है
मगर कायम  अभी भी है यहाँ  अंधकार  क्या कहिए/3/

न  देखो  राह   सूरज   की  सहर  हो  जाएगी  वरना
उजाले   जूगनुओं  से  ही करो  अब यार क्या कहिए/4/

जला पुतलों को ही बस  खुश जमाना हो रहा है अब
अजब है ये रवायत और अजब किरदार क्या कहिए/5/

निभाने  अब  लगे  हैं   लोग  भी   रस्मन  हंसी  ठठ्ठा 
न  आते  हैं वो  पहले की तरह  त्यौहार  क्या कहिए/6/

कवायद  है अजब  सब की बुराई  खत्म  हो अब तो 
बिके है शहर में  रावण   गजब  बाजार  क्या कहिए/7/

पड़ा है   जर्द सा   वो  चाँद  तुमको देख कर कब से 
बड़ा ही  सुर्ख था सुन  तजकिरा ए यार  क्या कहिए/8/

वहां  तो  गंध भी   बारूद  की   आती   फिजाओं में
रहा कल  खुश्बूओं से जो बड़ा  गुलजार क्या कहिए/9/

अदावत  के   बहाने   खूब  है  अब  पास  सबके ही
निगाहों में  नजर  आता  नही है    प्यार क्या कहिए/10/

यहां  बस  जोर है मजहब पे सबका ही जिधर देखो
बढ़ी  है  मुल्क में  ये ही  वजह  तकरार क्या कहिए/11/

छिपाए  फिरते हैं  पहलू में  ही  खंजर  यहांँ    सारे 
करोगे क्या किसी पे अब भला एतबार क्या कहिए/12/

नाराज़ अपने आप से खुद से खफ़ा हूँ मैं

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नाराज़  अपने आप से   खुद से  खफा हूँ मैं 
रिश्तों के  दरमियाँ हूँ    पर सबसे जुदा हूँ मैं/1/

इस जिस्मो खाक से कोई खुद को संवार ले 
इतना न  अपने आप में  भी अब बचा हूँ मैं/2/

खैरात  मत  मुझे  दो   उजाले  जरा से तुम
जुगनू  से   न  मिटूंगा     अंधेरा  घना  हूँ मैं/3/

गुम है शहर से आजकल अम्नो सुकून चैन 
आलम है  दहशतों  का   नही सो रहा हूँ मैं/4/

अंगड़ाई जुल्फ आईना ख्वाबों गुलाब चांद
बदला जो वक़्त भूल सभी कुछ गया हूँ मैं/5/

सजदा  इबादतें    ये  जियारत   है  राएगाँ 
उलझी सी जिंदगी है  व उलझा हुआ हूँ मैं/6/

मुद्दत  से हूँ  तलाश में    अपने  वजूद की
जाने हुआ  क्या ऐसा  कहाँ गुमशुदा हूँ मैं/7/

विशाल वट की जड़ों को ढूंढो

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विशाल वट की जड़ों को ढूंढो
कि जिसका कोई पता नही है
करो जरा साफ तुम वो तस्वीर
जिसमें अब धूल सी जमी है

है कैसी मिट्टी की गंध तुझमे
व कौन सी अपनी सरजमीं है
जुबान किसकी है सर चढ़ी ये
जो अपनी भाषा है कौन सी है

अब अर्थ भूला है माँ का बेटा
कि भाई भाई में दुश्मनी है
विपत्तियाँ देख भागे रिश्ते
नियत सभी की बदल चुकी है

बढ़ा रहे बाल अपने लड़के
व लड़कियाँ छोटे कर रही है
कि देख फैशन के दौर इंसानियत
वतन छोड़ जा चुकी है

समझता खूद को है बाप बेटा
ये बेटियाँ नानी बन गयी हैं
जमाना कैसा बदल गया है
तरक्कियाँ सब नयी नयी हैं

पढ़ाते हैं अब तो पाठ चेले
गुरू की अब अहमियत नही है
बदल रहा देश अब है मेरा
परंपराएं बदल रही हैं

भूला के संस्कार अपने देखो
कहाँ ये दुनिया पहुंच गयी है

लगी है होड़ जहाँ पर खरीद की साहब

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लगी है   होड़    जहाँ पर    खरीद  की  साहब 
किसे है   याद    कहानी      हमीद  की साहब/1/

हमारी   थाली में  बस    चांद उतर नही पाता
नही है  हमको   इजाजत  ही  दीद की साहब/2/

पहन    लिया है    पुरानी   कमीज  ही धोकर
रवायतें   तो    निभानी  है      ईद की  साहब/3/

तमाम  यार      नदारद   हुए      अचानक से
भनक  लगी  उन्हें   जब  कुछ  उमीद साहब/4/

सदा   पकड़ते हैं   कमजोर  नब्ज़  अपने ही
करें  अब आस  भला  क्या नवीद की साहब/5/

ख़बीस   पर   मची  हैहान    देख कर  भारी
सिसक  पड़ी है  शहादत  शहीद की  साहब/6/

हर एक लम्हों की रखता है वो खबर सबकी
नही है  उसको   जरुरत  रसीद  की   साहब /7/

नवीद - अच्छी खबर
ख़बीस - नीच
हैहान - हाय तौबा

भ्रष्ट आचरण दुराचार व्यक्तित्व धवल आकाश हुआ

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भ्रष्ट आचरण  दुराचार  व्यक्तित्व  धवल आकाश हुआ
शासन और सिंहासन पर  अब  चोरों का ही वास हुआ/1/

राम बने   या    रावण     राजा   दुर्योधन  या  युधिष्ठिर
चीर हरण  जनता का ही  हर युग में  देखो  खास हुआ/2/

महिमामंडित  हुए वही   नाखून  कटा  जो  शहीद हुए
फिक्र वतन की करने वालों का अस्तित्व ही नाश हुआ/3/

ख्वाब चढ़े  परवान  वही  जिनको  सीढ़ी उपलब्ध हुई
संघर्षों में   जीने वालों  का    हर  सपना   काश  हुआ/4/

बे घर बार   भटकते   देखे      राहों में   कितने जीवन
निर्जीव के हक बाग बगीचे  प्रतिष्ठान शिलान्यास हुआ/5/

जनता की आवाज़ बने जो  किस पर करें भरोसा अब
जनता के  कांधे चढ़  जो   पहुंचा वो  कुर्सी दास हुआ/6/

घर  उजड़े  दीवार ढही   सौहार्द   समाजिक  ढांचे की
मजहब के  झगड़े में  अक्सर  मानवता  का ह्रास हुआ/7/

अपराधी  बेख़ौफ़ हैं    घायल    सिस्टम  वेंटिलेटर पर
अच्छे दिन का हर जुमला अब लगता है इतिहास हुआ/8/

Wednesday 12 April 2023

आदमी पहले पहल अच्छा लगा

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आदमी    पहले पहल    अच्छा  लगा
जब समझ  आया  कोई  धोखा लगा/1/

देर  तक    बातें  हुईं   उस   शख्स से 
जो  कहीं   मुझमें  ही  था बैठा  लगा/2/

जिंदगी   मंहगी  लगी    यूँ  तो  बहुत 
साथ  लेकिन  अजनबी   जैसा  लगा/3/

खूब  वाकिफ हैं  तेरी फितरत से हम
जिंदगी  मत  इस  तरह   मस्का लगा/4/

जुल्फ  अंगड़ाई  तबस्सुम   कमसिनी
बस  यही  उन्वान     चर्चा  का  लगा/5/

आईने से      गुफ्तगू  की     देर तक
मिल कर अपने आप से अच्छा लगा/6/

दुश्मनों  से  डर  नही  अब उस तरह
दोस्तों  से     डर  हमे    जैसा  लगा/7/